**रामचरितमानस** तुलसीदास जी की एक प्रमुख काव्य कृति है, जिसमें भगवान श्रीराम के जीवन और उनके कार्यों का सुंदर वर्णन किया गया है। इसमें विभिन्न छंदों और दोहों का उपयोग किया गया है। यहाँ पर कुछ प्रमुख दोहे प्रस्तुत हैं:
जय श्री राम जय जय श्री राम
1. **पहला दोहा:**
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सियाराम मय सब जग जानी,
करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।
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(सारा संसार श्रीराम से परिपूर्ण है, मैं उसे साष्टांग प्रणाम करता हूँ।)
2. **दूसरा दोहा:**
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एक राम न जाति न कोई,
देखन सेहि न कछु मन तोई।
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(एक श्रीराम ही हैं, जिनकी जाति और कोई नहीं है। उन्हें देखने से ही मन संतुष्ट हो जाता है।)
3. **तीसरा दोहा:**
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हरि कृपा न करहिं कबहुँ बिनु,
तजहिं खल के घर सुकृत बिनु।
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(भगवान की कृपा बिना कभी कुछ नहीं होता, दुष्टों के घर में सुयोग भी नहीं मिलता।)
4. **चौथा दोहा:**
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सुकृत गुन गाइ बृंदावन,
संतन के प्रिय सब कुच्छ जान।
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(सुकृत और गुण बृंदावन में गाए जाते हैं, संतों को सब प्रिय होता है।)
5. **पाँचवाँ दोहा:**
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बनिक सबन दीन दुख दाय,
सोक सहे राम बिनु सुख न पाय।
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(सभी व्यापारी दीन और दुखी होते हैं, लेकिन राम के बिना सुख नहीं मिल पाता।)
6. **छठा दोहा:**
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जो सदा हरि गुण गा किऐ,
सो जीवन सुखी परिखिऐ।
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(जो हमेशा भगवान के गुण गाता है, उसका जीवन सुखमय होता है।)
7. **सातवाँ दोहा:**
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जाके राम नहीं बास,
सो अनाथ अघ बास।
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(जिसके पास श्रीराम का निवास नहीं है, वह अनाथ और पापी होता है।)
8. **आठवाँ दोहा:**
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धरम की नाव बिनु जल बक,
मरम बिनु सुख बिनु सज।
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(धर्म की नाव बिना जल के बक, सुख बिना सजावट के है।)
9. **नौवाँ दोहा:**
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जो राम प्रीति धरि समन के,
सो दुर्गति बिनु मति बोधि।
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(जो श्रीराम के प्रेम में समर्पित होता है, उसकी दुर्गति मिट जाती है और वह समझदार हो जाता है।)
10. **दसवाँ दोहा:**
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नाना लोकन गुन गाता,
तबहि सुखद सन सुख साधा।
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(वह सभी लोकों के गुणों का गान करता है, तब ही सुख और साधना प्राप्त होती है।)
ये दोहे रामचरितमानस के सौंदर्य और गहराई को दर्शाते हैं और धार्मिक एवं नैतिक शिक्षाओं का आदान-प्रदान करते हैं।
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