पियूष पांडे: भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज का निधन, एक युग का अंत

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piyush pandey

🕊️ विज्ञापन जगत में गूंजा एक दर्दनाक विदा

भारतीय विज्ञापन की दुनिया के सबसे प्रभावशाली नामों में शुमार पियूष पांडे का 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे ओगिल्वी इंडिया (Ogilvy India) के क्रिएटिव हेड और चेयरमैन के रूप में लंबे समय तक कार्यरत रहे। उनके जाने से न सिर्फ विज्ञापन उद्योग, बल्कि पूरी रचनात्मक दुनिया शोक में डूबी है।


🎨 भारतीय विज्ञापन को नया चेहरा देने वाले पियूष पांडे

पियूष पांडे का जन्म जयपुर में हुआ था और उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने 1982 में Ogilvy India से करियर की शुरुआत की और जल्द ही भारतीय विज्ञापन का चेहरा बदल दिया।

उन्होंने ऐसे विज्ञापन बनाए जो लोगों के दिलों में बस गए —

  • Cadbury का “कुछ खास है ज़िंदगी में”,
  • Fevicol का “जोड़ तोड़ से नहीं, दिल से”,
  • Asian Paints का “हर खुशी में रंग लाए”,
  • और Vodafone का प्यारा Pug वाला ऐड

इन अभियानों ने सिर्फ ब्रांड नहीं बनाए, बल्कि भारत के आम दर्शक को विज्ञापन से जोड़ दिया।


🏆 सम्मान और योगदान

पियूष पांडे को 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उन्हें कई बार “Father of Indian Advertising” कहा गया क्योंकि उन्होंने भारतीय संवेदनाओं और भाषा को विज्ञापन के केंद्र में रखा।

उन्होंने राजनीतिक अभियानों में भी योगदान दिया — जैसे मशहूर नारा “अब की बार, मोदी सरकार”


💬 उद्योग और नेताओं की श्रद्धांजलि

देशभर से शोक संदेशों की बाढ़ आ गई —
आनंद महिंद्रा ने X (Twitter) पर लिखा:

“वे सिर्फ एक विज्ञापन व्यक्ति नहीं थे, वे जीवन के हर रूप में रचनात्मकता के प्रतीक थे।”

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि,

“पियूष पांडे का योगदान भारतीय ब्रांड्स को विश्व मंच पर पहचान दिलाने में अविस्मरणीय है।”


🌟 विरासत जो हमेशा जीवित रहेगी

पियूष पांडे ने भारतीय विज्ञापन को केवल व्यावसायिक नहीं, बल्कि मानवीय और भावनात्मक दिशा दी। उनके बनाए विज्ञापन आम लोगों की कहानियों, भावनाओं और जीवनशैली से जुड़ते थे।
उनका निधन “एक युग का अंत” कहा जा सकता है, लेकिन उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर हमेशा जीवित रहेगी।


🕯️ निष्कर्ष

पियूष पांडे सिर्फ विज्ञापन नहीं बनाते थे — वे भावनाएँ गढ़ते थे
उनकी क्रिएटिव सोच ने हमें सिखाया कि “ब्रांड्स सिर्फ बेचते नहीं, बोलते भी हैं।”
आज जब पूरा उद्योग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है, एक बात तय है —
भारतीय विज्ञापन की आत्मा का नाम है “पियूष पांडे”।

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